Labels

"हर एक स्त्री और पुरुष को प्यार करने और प्यार पाने का जन्मजात और प्राकृतिक अधिकार है। इसलिए हर एक व्यक्ति को प्रेम सम्बन्ध में होना चाहिए।"-"Every Woman and Man Have Inherent and Natural Right to Love and being Loved. Therefore Every Person Should be in Loving Relationship."

Tuesday 3 June 2014

कंडोम के दुष्प्रभाव

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

आजकल छोटी उम्र की लड़कियों से लेकर उम्रदराज स्त्रियों तक सभी के द्वारा कंडोम को सबसे सुरक्षित गर्भनिरोधक के रूप में उपयोग किया जा रहा है। यही कारन है कि शतप्रतिशत सेक्सवर्कर अर्थात स्त्री वैश्याएँ बिना ये जाने कि कंडोम की क्वालिटी अर्थात गुणवत्ता शुरक्षित है या नहीं,  कंडोम का धड़ल्ले से उपयोग कर रही हैं। बेफिक्री से कंडोम का उपयोग करने वाली वयस्क महिलाओं और छोटी उम्र की लड़कियों तक में कंडोम के दुष्प्रभाव देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद भी लड़कियॉं और स्त्रियॉं धड़ल्ले से कंडोम का उपयोग करने में कोई संकोच नहीं कर रही हैं। जिसके प्रमुख कारण हैं। प्रथम-हर वर्ग और जगह के आम-ओ-खास लोगों में कंडोम को सबसे सुरक्षित गर्भनिरोधक के रूप में मिल चुकी मान्यता। दूसरा-गर्भनिरोधक गोलियों का मंहगा होने के साथ, उनके साइड इफेक्ट का डर और तीसरा-कंडोम के दुष्प्रभावों के बारे में, विशेषकर स्त्रियों में अज्ञानता। अनेक डॉक्टर्स द्वारा किये गये क्लीनिकल अध्यनों से कंडोम के ऐसे-ऐसे दुष्प्रभाव सामने आ रहे हैं, जिनके चलते स्त्री का सेक्स जीवन ही समाप्त हो रहा है, जो आने वाले समय में स्त्रियों और पुरुषों के लिये गम्भीर रूप से चिन्ता का विषय है। अभी तक के अध्ययनों के परिणामों से कंडोम के निम्न दुष्प्रभाव सामने आये हैं :-

01. दर्द एवं एलर्जी : ऐसा देखा गया है कि लगातार अर्थात सप्ताह में दो से अधिक बार कंडोम का उपयोग करने से योनि की आंतरिक परत और झिली में संवेदनशीलता काम या समाप्त हो जाती है। जिसके कारन स्त्रियों की यौनि से स्खलित होने वाले प्राकृतिक लुब्रिकेंट (चिकनाई युक्त) दृव्यों का स्वत: स्खलन कम हो जाता है या पूरी तरह से बन्द हो भी जाता है। जिसके चलते यौनि में खरास या सूखापन आता देखा गया है। जिसके कारण कंडोम का अधिक उपयोग करने वाली औरतों की योनि स्पर्श कातर (छुअन से ही दर्द महसूस होने वाली) हो जाती है। ऐसी स्थिति का सामना कर रही स्त्रियों द्वारा अपने प्रेमी या पति के साथ बिना कंडोम के सेक्स करने पर यौनि में असहनीय दर्द, जलन, एलर्जी और खुजली होना आम बात है।

02. सेक्स में आनन्द नहीं : जो स्त्रियॉं कंडोम का अधिक उपयोग करती हैं, कुछ समय बाद उनकी योनि में यौनेच्छा तथा रोमांच पैदा करने वाली स्वाभाविक चिकनाई और पुरुष के स्पर्श की सुखद अनुभूति कम या समाप्त ही हो जाती है, जिससे उनके मन में सेक्स के प्रति रुचि और संवेदना तो कम या समाप्त होती देखी ही गयी है, इसके साथ-साथ ऐसी स्त्रियों के जीवन में सेक्स क्रिया भी दु:खदायी शारीरिक श्रम की भांति ही पीड़ादायक अनुभव में बदल जाती है। इस कारण ऐसी स्त्रियॉं बिना कंडोम सेक्स करने से कतराने लगती हैं। ऐसी सूरत में उनके लिए कंडोम का उपयोग अपरिहार्य हो जाता है।

03. योनि ग्रीवा में कटाव और घाव : उक्त बिंदु दो में बताये गए में कंडोम का अधिक उपयोग करने से योनि ग्रीवा में कटाव और छिलन के साथ-साथ दर्दनाक घाव भी होते देखे गये हैं। जिसके चलते योनि में सोजन आ जाती है। योनि में सोजन की स्थिति में सेक्स करने पर योनि का आन्तरिक हिस्सा फिर से घायल हो जाता है। जिससे योनि में फिर से जख्म हरे हो जाते हैं। कई बार जख्मों से रक्तस्त्राव भी होने लगता है। जिसे स्त्रियॉं असमय मासिक चक्र का आना मानकर उसकी परवाह नहीं करती हैं और इस कारण से उन्हें जननांगों और गर्भाशय में भयंकर संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। जिससे योनि ग्रीवा या गर्भाशय में कैंसर होने का खतरा भी बना रहता है।

04. संक्रमित स्त्रियों के साथ बिना कंडोम सेक्स करने पर पुरुषों की लिंग में दर्द : लगातार कंडोम का उपयोग करने वाली स्त्रियों की योनि की आन्तरिक परत की स्वाभाविक नाजुकता, चिकनाई तथा लोच प्राय: समाप्त हो जाती है। योनि के आन्तरिक हिस्से में सोजन आ जाने या रूखापन आ जाने की वजह से योनि की नलिका (जिसमें सम्भोग क्रिया की जाती है वह) सकड़ी (छोटी) हो जाती है, जिससे योनि में लिगं को प्रवेश कराने में भी दिक्कत होती है। योनि इतनी सूखी और कठोर हो जाती है कि बिना कं डोम सेक्स करने वाले पुरुष की लिंग के साथ योनि की आंतरिक रूखी त्वचा का घर्षण होने से सेक्स क्रिया के दौरान लिंग में दर्दनाक पीड़ा होती है, जिससे लिगं पर छाले तथा जख्म हो जाते हैं। आम तौर पर वैश्याओं की योनि में ऐसे लक्षण देखे गये हैं। विशेषकर उन स्त्रियों में जो दोहरा जीवन जीती हैं। जैसे घरेलु औरतें किसी कारण से गुप-चुप वैश्यावृति करती हैं, उनके पतियों के ओर से डॉक्टरों को इस प्रकार की शिकायत की जाती हैं कि सेक्स करने से उनके लिंग में जख्म आ जाते हैं। लिंग को योनि में प्रवेश कराने में दिक्कत होती है। चिनाई या जैली का उपयोग करने के बाद भी ऐसी स्त्रियों के पतियों को बिना कंडोम सेक्स करने पर भयंकर दर्द का सामना करना पड़ता है। सेक्स करने के बाद कई दिन तक उनके लिंग में सोजन आ जाती है या लिंग के बाहरी हिस्से में जख्म हो जाते हैं। जिसके चलते वे सेक्स करने से ही कतराने लगते हैं।

06-लेटेक्स के बने कंडोम : लेटेक्स के बने कंडोम आपको गर्भधारण और योन-संचारित रोगों से बचाते हैं। मगर ये एलर्जी का सबसे आम कारण हैं और सेक्स के दौरान स्त्री की प्रतिक्रिया को घटा देते हैं, क्योंकि इसके प्रयोग के कारण योनि में सूखापन और खुजली के रूप में देखा गया है। इसका सबसे खराब दुष्प्रभाव है, स्त्री-पुरुष के जननांगों पर गंभीर दाने या जानलेवा आघात के रूप में दिख सकता है।

07-योनि की प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान : प्रकृति ने जननांगों को खुद ही अपनी प्रतिरक्षा की जन्मजात शक्ति प्रदान की लेकिन यदि सप्ताह में दो बार से अधिक कंडोम का उपयोग किया जाता है तो कंडोम योनि की प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके उपयोग से योनि की अम्लीय वातावरण में उथल-पुथल पैदा हो जाती है।

Monday 2 June 2014

सेक्स करते समय गलतियां करने से बचें

किसी ने ठीक ही कहा है कि जल्दी का काम शैतान का होता है। सेक्स एक ऐसी प्रक्रिया है जिसे जितना खूबसूरती के साथ धीरे-धीरे एहसास करोगे वो आपके लिए उतना ही आनन्ददायक बन जाएगा। ऐसे समय में कई बार जल्दबाजी करना गलत साबित हो जाता है और ये जल्दबाजी आपके साथी और आपके लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं। जल्दबाजी से आपको या आपके साथी को संक्रमण या फिर शारीरिक या मानसिक तकलीफ से भी गुजरना पड सकता है। सेक्स से पहले जरूरी है आपका मानसिक व शारीरिक रूप से स्वस्थ होना। आइए जानते हैं कि सेक्स के दौरान ऐसी क्या सावधानियां रखें जिनसे गलतियां होने की संभावना न रहे और इसे और ज्यादा रोचक बनाया जा सके।
  1. सेक्स के दौरान आपका पूरा ध्यान अपने साथी पर होना चाहिए। उस समय आपको सिर्फ अपने साथी पर फोकस करना चाहिए, इसके लिए आपको आस-पास की पूरी दुनिया को भूलाकर अपने साथी को अपनी नजदीकी का एहसास कराना चाहिए। 
  2. सेक्स के तुरंत बाद सोना नहीं चाहिए और न ही अपने साथी से दूर होकर बैठना चाहिए बल्कि अगर आप उस समय अपने साथी से बात करेंगें तो उसे ज्यादा अच्छा महसूस होगा। 
  3. सेक्स के बाद यदि आप डिना करना चाहते हैं तो अपने साथी को अपने हाथों से खाना खिलाएं और यदि आप सोने के मूड में हैं तो अपने साथी को एक अच्छी सी मसाज ऑफर करें उसे बहुत अच्छा लगेगा। 
  4. जरूरी नहीं सेक्स हमेशा बेड पर ही किया जाए आप सेक्स के दौरान स्नान भी कर सकते हैं इससे आपको सेक्स के दौरान एक फ्रेशनेस महसूस होगी और बाद में आप एक अच्छी नींद ले सकेंगें। 
  5. सेक्स के दौरान कभी अपे साथी से जबरन नजदीकी बनाने की कोशिश न करें इससे सेक्स समस्याएं भी हो सकती हैं बल्कि उसे सेक्स के लिए राजी करने की कोशिश करें और ये भी ध्यान रखें कि आपका साथी मानसिक रूप से किसी प्रकार के तनाव में न हो जिससे दोनों साथी सेक्स को पूरी तरह से एन्जॉय कर सकें। 
  6. सेक्स के दौरान जरूरी है कि आप इधर-उधर की बातें करने के बजाय रोमांस और प्यार की बातें करें। संभव हो तो मंदिम लाइट में हल्का संगीत भी चला सकते है जिससे सेक्स के दौरान दोनो साथी एक-दूसरे को अपने करीब पा सकें। 
  7. सेक्स के दौरान आपको अपना उत्साह भी दिखाना चाहिए। आपके साथी को ये नहीं लगना चाहिए कि आप सिर्फ अपने साथी को खुश करने के लिए उसके साथ है। 
  8. पुरुष सेक्स को लेकर ज्यादा उत्साहित होते हैं और इसी वजह से वह सेक्स को अलग-अलग तरीकों से करना चाहते हैं लेकिन आमतौर पर महिलाएं सेक्स के प्रति ज्यादा रुचि नहीं दिखाती हैं। सेक्स के दौरान महिलाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए उन्हें भी अपने साथी को सेक्स में पूरा सहयोग करना चाहिए। 
  9. महिलाओं को इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि वे सेक्स के दौरान अपने साथी को अकेलापन महसूस न होने दें, क्योंकि इसी में दोनों साथियों की सेक्स समस्या का समाधान छुपा है। 
  10. यदि आप सेक्स को रोचक बनाना चाहते हैं और आप ये चाहते हैं कि सेक्स और आपमें आपके साथी की रुचि हमेशा बनी रहे तो इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए सेक्स के दौरान गलतियां करने से बचें।

    स्त्रोत : आजतक समाचार, (//2012 , May , 30 , Wed,8:53 pm)
    - See more at: http://aajtaksamachar.com/menu.php?art=1001#sthash.dF5znhUq.dpuf

Sunday 1 June 2014

स्कूल में ही सेक्स कर लेती हैं 75 फीसदी लड़कियां!

नई दिल्ली। मैं कुंवारी हूं, लेकिन मुझे सेक्स के बारे में सबकुछ पता है, मेरी क्लास की 75 फीसदी लड़कियां सेक्स कर चुकी हैं, अगर मेरे ब्वायफ्रेंड के दूसरी लड़कियों के साथ संबंध है तो इसमें गलत क्या है, मेरे भी तो दूसरों के साथ संबंध हैं। मैं फेसबुक पर हर वो बात कह सकती हूं, जो आमतौर पर किसी के सामने नहीं कह सकती, सही मायने में फेसबुक हमारे लिए ही बना है।

ये जुमले सुनकर आपका चौंकना लाजिमी है लेकिन ये जानकर आपको और झटका लगेगा कि ये जुमले स्कूल जाने वाले लड़के-लड़कियों के हैं। वो जिनकी उम्र 13 से 20-21 साल की है और वो खुद को फेसबुक पीढ़ी कहलाया जाना पसंद करती है। भूल जाइए अपने वक्त की बातें, भूल जाइए अपना दौर, नए जमाने के टीनएजर्स के लिए जिंदगी के मायने बदल चुके हैं। हो सकता है ये रिपोर्ट देखकर आपकी पुरानी मान्यताओं को झटका लगे। हो सकता है आप का दिल इसे सच न माने लेकिन हकीकत यही है।

अब तक ऐसी बातें आपने फिल्मों में देखी-सुनी होगी, लेकिन आज मेट्रो शहरों की फेसबुक पीढ़ी के बीच ऐसी ही बातें होती हैं। सेक्स को लेकर ये पीढ़ी किसी बंदिश को नहीं मानती, और सेक्स के बारे में इनके बीच खुली बातचीत होती है। ये हकीकत है मेट्रो शहरों के स्कूलों में जाने वाले उन लड़के-लड़कियों की जो मोबाइल फोन के बिना एक पल नहीं जी सकते। लैपटॉप उनकी जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है। उनकी बातचीत में चैट, ब्राउज, एसएमएस, ट्विटर, फेसबुक, स्मोक, ड्रिंक्स और सेक्स जैसे शब्द आम हो गए हैं।

इस पीढ़ी के लड़के-लड़कियां एडल्ट फिल्में देखते हैं, सेक्स करते हैं और सेक्स संबंध बनाने के बाद लड़कियां गर्भ निरोधक गोलियों का बेधड़क इस्तेमाल करती हैं। एक वीकली मैग्जीन में छपे सर्वे के मुताबिक मेट्रो शहरों के स्कूलों में पढ़ने वाली हर 100 टीन एजर लड़कियों में से 25 लड़कियां सेक्स कर चुकी हैं। लेकिन जब इस सर्वे के बारे में स्कूल जाने वाली एक लड़की से बात की गई तो उसने बताया कि ये आंकड़ा गलत है। उसकी क्लास में पढ़ने वाली 75 फीसदी लड़कियां सेक्स कर चुकी हैं।

एक सर्वे के मुताबिक मेट्रो शहरों में पली-बढ़ी ये पीढ़ी एक दिन में 38 घंटे का काम निपटा रही है। इसमें चैटिंग, ब्राउजिंग, फोन पर बातचीत, एसएमएस, शराब पीना और सेक्स तक शामिल है। ये बात भी सामने आई है कि 12वीं में पढ़ने वाले कई छात्र तो हर वक्त पॉकेट में कॉन्डोम लेकर घूमते हैं। ये सोचकर कि न जाने कब इसकी जरुरत पड़ जाए।

मेट्रो शहरों के इन लड़के-लड़कियों के बीच मल्टीपल डेटिंग का कॉन्सेप्ट तेजी से फैल रहा है। यानी एक ही वक्त में एक से ज्यादा बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड। इतना करने के बाद भी किसी से कुछ छिपाने की जरुरत नहीं क्योंकि ये पीढ़ी एफडब्ल्यूबी में यकीन रखती है। FWB यानी Friends With BenefitS, सिर्फ सुविधा के लिए बनाया गया दोस्त। इस पीढ़ी का मूल मंत्र है नो कमिटमेंट, नो डिमांड, नो प्रॉब्लम। यानी जिस उमर के लड़के-लड़कियों को दुनियादारी के मामले में नादान समझा जाता है। उस उमर में वो रिश्तों की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।

इन टीनएजर्स को पढ़ाई में आगे रहने से ज्यादा इस बात की फिक्र होती है कि उनके फेसबुक प्रोफाइल में उनकी तस्वीर बुरी तो नहीं लग रही। लड़कियों को डर रहता है कि कोई दोस्त उनकी तस्वीरें देखकर फगली न लिख दे। फगली- फैट और अगली शब्दों को मिलाकर बना है (यानी मोटी और भद्दी)। इन स्कूली छात्रों में इस बात की होड़ लगी रहती है कि किसके फेसबुक अकाउंट में सबसे ज्यादा फ्रेंड हैं।

स्त्रोत : आईबीएन-7 | 07-Jan 11:22 AM

Wednesday 9 April 2014

कैसे पुरुषों को पसंद करती हैं महिलाएं?

मनीष मल्होत्रा 

लड़के अगर कुछ फैक्टर्स के बल पर लड़कियों को पसंद करते हैं, तो इस मामले में लड़कियां भी कोई कम नहीं हैं। लड़कों को पसंद करने के उनके अपने कायदे हैं और वे खुद से बेटर पोज़िशन वाले को जल्दी पसंद कर लेती हैं। इसके लिए वे कुछ ऐसी बातों तक को इग्नोर कर देती हैं, जिनसे समझौता आमतौर पर मुश्किल होता है।

मशहूर दार्शनिक फ्रायड ने कहा था कि उन्हें इस बात का जवाब कभी नहीं मिला कि एक औरत अपनी जिंदगी से क्या चाहती हैं। कुछ ऐसी ही उधेड़बुन से आपको आज की ज्यादातर महिलाएं भी जूझती दिख जाएंगी। बेशक इस कन्फ़्यूज़न के केंद्र में शादी और उससे जुड़े सवाल ही अहम रहते हैं। ऐसे में यह सोचना कि महिलाएं फ़ाइनैंशल तौर पर पुरुषों पर निर्भर नहीं होना चाहतीं, पूरी तरह से सच नहीं है। आज की महिलाएं भी बेहतर करियर से ज्यादा खुशहाल परिवार का सपना देखती हैं। हालांकि, इस बात को खुले तौर पर मानने में उन्हें थोड़ी हिचक होती है।

जी हां, तमाम स्टडी से यह बात साबित हुई है। अक्सर देखा भी गया है कि लड़कियां बॉयफ्रेंड को शादी के लिए मना कर देती हैं। उनका कहना होता है कि वे अपने करियर में आगे बढ़ना चाहती हैं और अभी सेटल होने के बारे में नहीं सोच रही हैं। लेकिन, हायर डिग्री वाले या फिर हाई इनकम वाले वेल-सेटल्ड लड़के के साथ उनका रवैया ऐसा नहीं रहता। ऐसे पुरुष के साथ शादी के प्रपोजल को वे झट मान जाती हैं।

पुरानी सोच का डर : इसी तरह की एक रिसर्च से जुड़ीं लंदन स्कूल ऑफ इकॉनमिक्स की रिसर्चर कैथरिन हाकिम बताती हैं, ‘दुनिया भर में विमिन इम्पॉवरमेंट की बातें लगभग 40 साल से चल रही हैं। ऐसे में बस हाउसवाइफ बनने की बात को महिलाएं स्वीकार नहीं पातीं। अगर यह बात उनके मन में होगी, तो भी वे दकियानूसी कहलाए जाने के डर से यह बात नहीं कहेंगी। हालांकि, हमारे आसपास ऐसी तमाम महिलाएं हैं, जो फाइनैंशल मैटर्स के लिए अपने पार्टनर पर डिपेंड रहना चाहती हैं।’

गौर करने वाली बात यह है कि उम्र ज्यादा होने पर भी महिलाएं ऐसे साथी के सपने संजोए रहती हैं , जो हर लिहाज से उनसे आगे हो। रिसर्च के दौरान देखा गया कि कई यूरोपियन देशों की उम्रदराज महिलाएं भी शादी के लिए तभी तैयार हुईं , जब उन्हें अपने से ज्यादा धनवान और पढ़े – लिखे पुरुष मिले। ब्रिटेन में लगभग 50 साल पहले हुई एक रिसर्च में 20 फीसदी महिलाएं अपने से ज्यादा पढ़े-लिखे पुरुष से शादी करना चाहती थीं , वहीं पिछले दशक में ये आंकडे़ 38 फीसदी तक पहुंच चुके हैं। यही पैटर्न पूरे यूरोप , यूएस और ऑस्ट्रेलिया में भी नोट किया गया। जाहिर है , तेजी से वेस्टर्न कल्चर में ढल रहीं इंडियन मेट्रोज की महिलाएं भी इस राह पर हैं।

नजरिया अलग–अलग : हालांकि इस रिसर्च को लेकर महिलाओं की राय अलग–अलग है। जहां, कुछ इससे सहमत नजर आती हैं , वहीं कुछ को इसमें दम नजर नहीं आता। एक एचआर फर्म में बतौर हेड काम कर चुकीं श्रुति सिंह इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं दिखतीं। श्रुति का कहना है, ‘मैंने लव मैरिज की और हाल में अपनी जॉब से रिजाइन दिया है। दरअसल, मेरे हज़्बंड को पांच साल के लिए लंदन की एक आईटी कंपनी में जॉब मिली है और मैं उनके साथ जाना चाहती हूं। मेरा फैसला इमोशंस और जिम्मेदारी से लिया गया है। इसमें उनके पैकेज की बात कहीं नहीं है। फिर वहां जाने पर भी मैं पढ़ाई या जॉब कर सकती हूं।'

वैसे, बैंक प्रफेशनल निहारिका जोशी ऐसे मैच को बेस्ट ऑप्शन मानती हैं। उनका कहना है, ‘जिंदगी में घर और ऑफिस की दुधारी तलवार पर लटकने से क्या मिलेगा? आपको घर की जिम्मेदारी तो निभानी ही होगी, तो अच्छा है कि ज्यादा पैकेज वाले पुरुष से शादी की जाए। इस तरह न तो बॉस की धौंस सहनी पड़ेगी और एक स्टैंडर्ड के घर का आराम भी मिलेगा।'

इस बात का एक और पहलू मीडिया प्रफेशनल गौरी कपूर सामने रखती हैं। वह कहती हैं, ‘हर सफल पुरुष ऐसी बीवी चाहता है, जो अपने लेवल पर सफल हो। इसलिए महिलाओं से जुड़ी इस रिसर्च में मुझे खास दम नहीं लग रहा है।'

जानते हैं पुरुष भी : गुड़गांव की एक फूड बेवरेज फर्म में काम करने वाले गौरव कपूर की बात से यंग जेनरेशन की अप्रोच एकदम क्लीयर हो जाती है। वह मानते हैं कि सही पोस्ट और पैसे से लड़की ही नहीं , बल्कि उसकी फैमिली को इंप्रेस करना भी आसान रहता है और रिश्तों में अनबन की गुंजाइश भी कम होती है। बकौल गौरव, ‘मैंने अपनी गर्लफ्रेंड से साफ कह दिया है कि जब तक मैं सीनियर मैनेजर की पोस्ट पर नहीं आ जाता, सेटल होने का सवाल ही नहीं उठता है। इससे उसे भी कोई ऐतराज नहीं है, क्योंकि उसकी फैमिली को भी तो ऊंची पोस्ट का दामाद पसंद आएगा!’

कुछ पुरुष इस मामले को थोड़ा और दूर ले जाते हैं। उनका कहना है कि हाई सोसाइटी की तमाम महिलाएं अपने पार्टनर के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तक को इसी वजह से इग्नोर कर देती हैं। सुंदर और सुरक्षित भविष्य की चाहत में सब कुछ जानते हुए भी वे ज्यादा हायतौबा नहीं मचातीं। इस तरह सोसाइटी में उनकी बेइज्जती भी नहीं होती और ऐशोआराम की जिंदगी भी बनी रहती है।

स्त्रोत : जागरण जंक्शन ब्लॉग "अनुभूति"-अंतस की पुकार पर चलती कलम, पोस्टेड ओन: 5 Aug, 2011

Monday 7 April 2014

यौनेच्छा सिर्फ तुम्हारी बपौती नहीं है पुरुषो!

‘लड़की की यौनेच्छा गलत और लड़के की यौनेच्छा सही’ भयानक धारणा है. समाज में प्रचलित यौन व्यवहार को देखकर समझा जा सकता है कि यौनेच्छा पुरुष का मालिकाना हक है, जिसकी पूर्ति स्त्री की नैतिक-धार्मिक जिम्मेदारी है. धर्मग्रंथों में स्त्री की यौनेच्छा को पुरुष के मुकाबले आठ गुना ज्यादा बताया गया है, मगर व्यवहार में उसे स्वीकार ही नहीं किया जाता...

गायत्री आर्य

वर्ष 2013 के शुरू में जस्टिस वर्मा कमेटी ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की वकालत की. साथ ही कहा कि सेक्स एजुकेशन कम उम्र के यौन व्यवहार को बढ़ावा देती है, यह सोच बिल्कुल आधारहीन है. जस्टिस वर्मा का कहना था कि बच्चे इंटरनेट और विज्ञापनों के माध्यम से गलत यौन शिक्षा लें, उससे बेहतर है कि उन्हें पूर्वाग्रहमुक्त सही यौन शिक्षा दी जाए.

इसी वर्ष के आखिर में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कल्याण ज्योती सेनगुप्ता ने कहा कि "सेक्स एजुकेशन ने संवेदनशील उम्र के बच्चों को बिगाड़ दिया है." भारतीय समाज अस्वस्थ और जबरन बनने वाले यौन संबंधों को तो स्वीकार करता है, लेकिन स्वस्थ यौन संबंधों की सीख आज भी उसकी रूह कंपाती है!

पूरे सामाजिक माहौल में सेक्स घुला हुआ है. खबरिया चैनलों, अखबारों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों, गानों, फिल्मों, सीरियलों चुटकुलों, बातचीत, बाजार हर एक चीज में सेक्स के लिए खुला उकसावा है. इन सब जगहों में सेक्स की असहज उपस्थिति भी अब सहज लगने लगी है. सेक्स करने के लिए उकसाती हर एक चीज हमें उत्तेजित करती है, खुश करती है.

समाज में विवाह से बाहर यौन संबंध हमेशा से रहे हैं, चाहे उन्हें कोई स्वीकार करे या नहीं. यह कैसी बात है कि हम असुरक्षित यौन संबंधों, बलात बनने वाले संबंधों, यहां तक कि यौन हिंसा-यौन शोषण के लिए भी तैयार हैं; लेकिन यौन शिक्षा के नाम पर हमारे दिमाग की नसें तड़कने लगती हैं. यह कितना शर्मनाक है कि हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन की शुरुआत नन्हे-नन्हे से बच्चों को यौन हिंसा के कैसे बचा जाए का पाठ पढ़ाने से शुरू हो रही है.

समाज में पुरूष सेक्स का ग्राहक और स्त्री उसकी पूर्तिकर्ता के तौर पर है. समाज अभी भी यौन संबंधों को लेकर इस घटिया और बेहद गलत सोच से निकलना नहीं चाहता. लड़कियों/स्त्रियों ने अपनी शारीरिक, मानसिक ताकत, प्रबंधन क्षमता, हुनर, कौशल, अपने मजबूत इरादों का लोहा तो मनवा लिया है, पर उनकी यौन जरूरतें भी पुरुषों के समान हैं, सहज हैं, यह बात अभी भी किसी के गले नहीं उतर रही. कोई इस पर बात भी नहीं करना चाहता. यौन शिक्षा समाज में प्रचलित भयानक और हिंसक यौन व्यवहार को नियंत्रित करने में, उसे सही दिशा देने में एक महत्वपूण भूमिका निभा सकती है.


कई चीजों के लिए सेक्स एजुकेशन बेहद जरूरी है. जैसे लड़कियों को सुरक्षित-असुरक्षित स्पर्श के बारे में बताने के लिए, लड़कों को यौन अपराध से बचाने के लिए, लड़कियों को अनचाहे गर्भ से बचाने के लिए, किशोरावस्था में लड़कियों के भीतर विपरीत लिंग के प्रति जो प्राकृतिक आकर्षण है, उसे लेकर उन्हें हर तरह का अपराधबोध से बचाने के लिए, लड़के किशोरावस्था के आकर्षण को कैसे संतुलित, सहज और स्वस्थ तरीके से डील करें यह समझाने के लिए, किशारे-किशोरी दोनों ही किशोरावस्था के आकर्षण के कारण किसी मुसीबत में न फसें यह बताने के लिए. आश्चर्य है कि समाज हर तरह की अशलीलता में तो आनंद लेता है, लेकिन स्वस्थ यौन शिक्षा के नाम पर बिदकता है!


अक्सर किशोर अपनी नई-नई यौनेच्छा के कारण घर-परिवार के बच्चों, छोटे लड़के-लड़कियों दोनों को ही सेक्सपूर्ति का जरिया बनाते हैं, जो कि अपने आप में यौन अपराध है. उन्हें यह बताना बेहद जरूरी है कि सेक्स की पहली शर्त ही लड़की-लड़के दोनों की परस्पर सहमति है.

सेक्स को परस्परता और सहमति से ही जोड़कर देखना बच्चों को सेक्स एजुकेशन में बहुत अच्छे से सिखाया जा सकता है. खासतौर से किशोरों/लड़कों को यह सिखाना होगा कि लड़की की सहमति सेक्स की बुनियादी शर्त है. साथ ही सहमति में यौन संबंध सबसे ज्यादा सुखद और आनंदकारी होते हैं. उन्हें ‘सेक्स सिके्रट‘ की तरह बताया जाना चाहिए कि परस्पर सहमति यौन संबंध को सबसे ज्यादा एंजॉय करने का एकमात्र तरीका है. यहीं से लड़कों/पुरुषों का मानस तैयार होगा कि यह लड़कियों पर थोपा जाने वाला व्यवहार नहीं है. बचपन में बार-बार सिखाई गई कई किताबें बातें बच्चे अक्सर लंबे समय तक याद रखते हैं. हो सकता है यौन व्यवहार तक पहुंचने में कुछ अच्छा उनके जेहन में अटका रह जाए.

हाल-फिलहाल की दो फिल्मों के नायकों के संवादों से बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि सेक्स के विषय में पुरुषों को लेकर समाज का क्या रवैया है. फिल्म 'बुलेट राजा' और 'राम-लीला' दोनों के नायक कुछ मिलता-जुलता सा डायलॉग देते हैं कि वे अभी तक डेढ़ सौ लड़कियों के साथ संबंध बना चुके हैं. हॉल में इन संवादों का स्वागत जोरदार सीटियों और हंसी से होता है. जाहिर है कि सीटियां बजाने वाले और ठहाका लगाने वाले भी पुरुष ही होंगे!

क्या दर्शक इसके विपरीत सीन की भी उम्मीद कर सकते हैं? क्या नायिका कह सकती है कि वह सौ-डेढ़ सौ पुरुषों के साथ संबंध बना चुकी है? क्या ऐसा कहने वाली नायिका, नायिका बची रह सकती है? न तो कोई नायिका इस बात को कह सकती है और न ही वह सीटियां और हंसी-ठहाके के साथ स्वागत पाएगी. सिर्फ खलनायिका या सेक्सवर्कर से ऐसे संवादों की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन भारतीय पुरुष डेढ़ सौ लड़कियों के साथ यौन संबंध बना के भी नायक ही बना रहेंगे, सेक्सवर्कर नहीं बन जाएंगे!

ऐसे संवाद बोलने वाला नायक सारे पुरुषों को हीरो बन जाता है. नायक का ऐसा यौन व्यवहार पुरुषों का सपना बन जाता है, लेकिन ऐसी किसी लड़की की कल्पना उन्हें गुस्से और घृणा से भर देगी! लड़कियों की यौन इच्छा को नकारना और नकारात्मक तरीके से देखना और पुरुषों की यौन इच्छा को स्वीकार करना और उसका महिमामंडन करना, निश्चित तौर पर यह सोच और व्यवहार भी समाज में बलात्कार और यौन हिंसा को बढ़ावा देता है. स्त्री-पुरूष दोनों की यौन इच्छा को बराबरी के स्तर पर स्वीकार करने और उसका सम्मान किये जाने की सख्त जरूरत है.

नई पीढ़ी की लड़कियों में अपनी यौनेच्छा को लेकर लगभग वैसी ही सजगता है, जैसी पुरुषों-लड़कों में होती है. लेकिन समाज के बड़े हिस्से की लड़कियों/स्त्रियों और लड़कों/पुरुषों की यौनेच्छा में आज भी भयानक फर्क है. लड़कियों की यौनेच्छा को समाज अक्सर खतरनाक चीज की तरह देखता है और उसकी कड़ी पहरेदारी करता है. इस कारण लड़कियां खुद अपनी इस इच्छा को लेकर कुछ अपराधबोध में रहती हैं, उसे दबाती हैं, नकारती हैं या फिर उसे खुलकर अभिव्यक्त भी नहीं करना जानती या चाहती.

दूसरी तरफ लड़कों की यौनेच्छा के प्रति समाज बहुत ज्यादा खुली सोच वाला है और गर्व से भरा रहता है. उसका यौन व्यवहार पूरी तरह नियंत्रण मुक्त है. इस कारण लड़के अपने यौन व्यवहार के प्रति न सिर्फ बेहद सजग, बल्कि आक्रामक भी रहते हैं! लड़के-लड़कियों के यौन व्यवहार को लेकर समाज के इस भयानक फर्क का परिणाम है कि पतियों की यौनेच्छा जबरदस्त सक्रिय रहती है और पत्नियां तुलनात्मक रूप से निष्क्रिय रहती हैं.

इसी कारण यह स्थिति अधिकांशत घरों का सच है कि पत्नियां सेक्स में आनंद के लिए इनवॉल्ब नहीं होती हैं. "पति की इच्छा पूर्ति करना उनका फर्ज है" की सोच के साथ वे सेक्स में इनवॉल्ब होती हैं. साथ ही यह डर भी उन्हें अचनाहे सेक्स में धकेलता है कि पति इस इच्छा के कारण उन्हें छोड़कर कहीं और न जाएं!

सेक्सॉलाजिस्ट प्रकाश कोठारी कहते हैं कि "अधिकांशत भारतीय पति पत्नियों को 'स्लीपिंग पिल' की तरह इस्तेमाल करते हैं." सेक्स एजुकेशन यहां बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है. एक तरफ लड़कियां भी अपनी सेक्स जरूरतों को पहचानें और उसे स्वीकार करें. साथ ही लड़कों/पुरुषों को भी यह बताया-सिखाया जाना चाहिये कि ‘सेक्स की जरूरत सिर्फ पुरुष की होती है और स्त्री उसमें सिर्फ सहयोग करती है’ यह बेहद गलत और विध्वंसकारी धारणा है. इससे पति-पत्नियों के बीच अक्सर एकतरफा बनने वाले यौन संबंधों में कुछ सुधार होगा.


यौनेच्छा पुरुषों की बपौती नहीं है! वह स्त्रियों की भी उतनी ही है जितनी कि पुरुषों की. हां, वर्तमान में तमाम तरह के सामाजिक दबावों, गलत धारणाओं, लड़कियों के लिए यौनशुचिता के एकतरफे दबाव, बच्चे के पालन-पोषण की एकतरफा जिम्मेदारी आदि कारणों से लड़कियों में यौनेच्छा कम होती है, अधिकांशत उन्हें पति की इच्छापूर्ति का साधन भर बनना पड़ता है.


सेक्स एजुकेशन में शुरू से ही लड़कों के दिमाग में यह बात बैठानी चाहिए कि यौनेच्छा लड़का-लड़की दोनों में होती है. खासतौर से लड़कों को बताया जाना चाहिए कि उन्हें स्त्रियों की इच्छा-अनिच्छा का सम्मान करना चाहिए. साथ ही यह भी कि 'लड़की की यौनेच्छा गलत और लड़के की यौनेच्छा सही' भयानक धारणा है. समाज में प्रचलित यौन व्यवहार को देखकर समझा जा सकता है कि यौनेच्छा पुरुष का मालिकाना हक है जिसकी पूर्ति स्त्री की नैतिक-धार्मिक जिम्मेदारी है.

धर्म ग्रंथों में स्त्री की यौनेच्छा को पुरुष के मुकाबले आठ गुना ज्यादा बताया गया है, मगर व्यवहार में उसे स्वीकार ही नहीं किया जाता. सेक्स एजुकेशन में स्त्री की यौनेच्छा के प्रति इन दोनों अतिवादी और गलत सोचों को खत्म किया जा सकता है. समाज में प्रचलित हिंसक यौन व्यवहार को खत्म कर स्वस्थ यौन व्यवहार का प्रचलन बढ़ाने में सेक्स एजुकेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. सेक्स एजुकेशन का मुख्य उद्देश्य लड़कियों को यौन शोषण से बचाने की शिक्षा भर देना न होकर समाज में स्वस्थ यौन व्यवहार की स्थापना होना चाहिए.
लेखिका " गायत्री आर्य महिला मसलों की विश्लेषक हैं. स्त्रोत : जनज्वार, WEDNESDAY, 02 APRIL 2014 11:43

Saturday 8 March 2014

औरतों को सेक्‍स लाइफ के बारे में पति से ज्‍यादा दोस्‍तों से बात करना पसंद

सेक्‍स लाइफ के बारे में पति से ज्‍यादा दोस्‍तों से बात पसंद

अमूमन महिलाएं अपने पार्टनर से लगभग हर बात शेयर करती हैं। लेकिन एक स्‍टडी में इस बात का खुलासा हुआ है कि महिलाएं अपनी सेक्‍स लाइफ के बारे में अपने पति से ज्‍यादा दोस्‍तों से बात करना पसंद करती हैं।

रिसर्च के मुताबिक 34 फीसदी महिलाएं जब अपनी दोस्‍तों के साथ नाइट आउट के लिए जाती हैं तो वे सेक्‍स पर बात करना पसंद करती हैं, जबकि सिर्फ 16 फीसदी महिलाएं अपने पार्टनर से इस विषय पर चर्चा करती हैं। वहीं 57 फीसदी महिलाएं नाइट आउट के दौरान परिवार और 54 फीसदी छुट्टियों के बारे में बातें करती हैं।

महिलाओं के गेट-टूगेदर के दौरान 64 फीसदी पुरुष महिलाओं के पुरुष साथियों के बारे में बातें करते हैं, जबकि करीब 50 फीसदी पुरुषों ने कहा कि वे दूसरों के रिलेशनशिप पर गॉसिप करना पसंद करते हैं।

रिसर्च से इस बात का भी पता चला है कि महिलाएं डेट की तुलना में दोस्‍तों के साथ बाहर जाने के लिए ज्‍यादा सजती-संवरती हैं और हर तीन में से एक महिला अपने लिए नए कपड़े खरीदती है, जबकि डेट पर जाने के लिए 5 में से 1 महिला ही ऐसा करती है। यही नहीं वे मेकअप करने में 50 मिनट लगाती हैं।    

Wednesday 19 February 2014

सम्भोग के दौरान दर्द?-Pain During Intercourse?

गीतांजलि चंद्रशेखरन

सेक्स से बढ़िया चॉकलेट होता है। ऐसा कई महिलाओं का कहना है जो हर दिन पेनफुल इंटरकोर्स से जूझती हैं। रितिका सोहनी बेहिचक इस तथ्य को स्वीकार करती हैं। उन्होंने कहा कि उस एपिसोड को बिते 5 साल हो गए हैं। तब मुझे अपनी देह में वजाइना की स्थिति के बारे में कोई आइडिया नहीं था। आज की तारीख में सोहनी 33 साल की हैं। उनकी हाल ही में शादी हुई है। सोहनी ने शादी के 6 महीने बाद गाइनकॉलजिस्ट(स्त्री रोग विशेषज्ञ) से मिलने का फैसला किया। वह इंटरकोर्स के दौरान होने वाले दर्द से परेशान थीं। सेक्स के दौरान वजाइना में हाइमन के टूटने से होने वाली ब्लीडिंग चिंता का सबब नहीं था ब्लकि सोहनी इंटरकोर्स के दौरान जिस दर्द को झेल रही थीं उससे वह बेहद परेशान थीं। जब भी सोहनी को इंटिमेट होने का मौका मिलता है, वह डर जातीं। सोहनी नहीं चाहती कि उनका पति इंटरकोर्स करे।
सोहनी ने बताया कि उन्होंने एक दूसरे गाइनकॉलजिस्ट से मिलने का फैसला किया। लेकिन उस डॉक्टर ने सेक्स के दौरान सहयोग न मिलने पर थप्पड़ मारने की सलाह दी। सोहनी ने बताया कि सौभाग्य से मेरे पति ने उस सलाह पर विचार तक नहीं किया। अब सोहनी के पास इस मामले में ऑनलाइन रिसर्च का विकल्प बचा था। रिसर्च के दौरान सोहनी को पता चला कि वह योनी संकुचन की समस्या से पीड़ित हैं। इस समस्या से घिरे होने पर न चाहते हुए भी वजाइना सिकुड़ने की स्थिति में आ जाता है। ऐसी स्थिति में इंटरकोर्स के दौरान अथाह दर्द, जलन और टीस से कोई भी परेशान हो सकती है। ऐसे में पुरुष के लिए भी इंटरकोर्स असंभव है।

केईएम हॉस्पिटल के सेक्शुअल मेडिसीन डिपार्टमेंट के एचओडी डॉ. राजन बंसल ने कहा कि ऐसी हालात में महिलाएं कुछ कहने की स्थिति में नहीं होती हैं कि वह बिस्तर पर नाकाम क्यों रह जाती हैं। डॉ. बंसल ने कहा कि ज्यादातर मामलों में इंटरकोर्स के दौरान यह दर्द मनोवैज्ञानिक होता है। तब संभव है कि उसे किसी बच्चे की तरह अब्यूज किया जाता हो। या फिर कोई उसकी दोस्त कहे कि सेक्स पेनफुल होता ही है। कई ऐसी वजहें हो सकती हैं जब इंटरकोर्स किसी ट्रॉमा से कम नहीं होता। ऐसी स्थिति में काउंसलिंग का सहारा लिया जा सकता है। दोनों को इस समस्या से डरने की बजाय पूरे विश्वास के साथ समझने की जरूरत है। इसमें पुरुष साथी को चाहिए कि वह इंटरकोर्स इत्मीनान और आहिस्ते-आहिस्ते करे। इस दौरान ज्यादा प्रेशर से बचना चाहिए। झटके से भी बचें। ऐसी स्थिति में महिलाएं इस आइडिया को आजमा सकती हैं। वे इंटरकोर्स से पहले अपने वजाइना की में अपनी उंगली डालकर थोड़ा फैलाने की कोशिश करें। इससे उन्हें इंटरकोर्स की प्रक्रिया को समझने में मदद मिलेगी। मिरर सेक्स कॉलमिस्ट डॉ. महिंदर वत्स का कहना है कि ऐसे मामलों में कई बार जारूकता की भी कमी देखी जाती है। कपल्स को यह बात पता होती है कि वजाइना पर्याप्त रूप में फैलने में समर्थ होता है। नॉर्मल डिलिवरी में इस बात को हम बखूबी समझते भी हैं। ऐसे में सेक्स के दौरान इंटरकोर्स कोई समस्या नहीं हो सकती। उन्होंने कहा कि इस तरह के ज्यादातर मामलों में फोर प्ले की कमी होती है। मर्दों के मुकाबले महिलाएं सेक्स के दौरान उत्तेजित होने में ज्यादा वक्त लेती हैं। यदि वजाइना ड्राइ है तो इंटरकोर्स पेनफुल होगा। स्त्रोत : हमाचल गौरव उत्तराखंड, शीर्षक-"महिलाएं बिस्तर पर नाकाम क्यों

s

s
s

d

d
d