Labels

"हर एक स्त्री और पुरुष को प्यार करने और प्यार पाने का जन्मजात और प्राकृतिक अधिकार है। इसलिए हर एक व्यक्ति को प्रेम सम्बन्ध में होना चाहिए।"-"Every Woman and Man Have Inherent and Natural Right to Love and being Loved. Therefore Every Person Should be in Loving Relationship."

Monday 7 April 2014

यौनेच्छा सिर्फ तुम्हारी बपौती नहीं है पुरुषो!

‘लड़की की यौनेच्छा गलत और लड़के की यौनेच्छा सही’ भयानक धारणा है. समाज में प्रचलित यौन व्यवहार को देखकर समझा जा सकता है कि यौनेच्छा पुरुष का मालिकाना हक है, जिसकी पूर्ति स्त्री की नैतिक-धार्मिक जिम्मेदारी है. धर्मग्रंथों में स्त्री की यौनेच्छा को पुरुष के मुकाबले आठ गुना ज्यादा बताया गया है, मगर व्यवहार में उसे स्वीकार ही नहीं किया जाता...

गायत्री आर्य

वर्ष 2013 के शुरू में जस्टिस वर्मा कमेटी ने स्कूलों में सेक्स एजुकेशन की वकालत की. साथ ही कहा कि सेक्स एजुकेशन कम उम्र के यौन व्यवहार को बढ़ावा देती है, यह सोच बिल्कुल आधारहीन है. जस्टिस वर्मा का कहना था कि बच्चे इंटरनेट और विज्ञापनों के माध्यम से गलत यौन शिक्षा लें, उससे बेहतर है कि उन्हें पूर्वाग्रहमुक्त सही यौन शिक्षा दी जाए.

इसी वर्ष के आखिर में आंध्रप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कल्याण ज्योती सेनगुप्ता ने कहा कि "सेक्स एजुकेशन ने संवेदनशील उम्र के बच्चों को बिगाड़ दिया है." भारतीय समाज अस्वस्थ और जबरन बनने वाले यौन संबंधों को तो स्वीकार करता है, लेकिन स्वस्थ यौन संबंधों की सीख आज भी उसकी रूह कंपाती है!

पूरे सामाजिक माहौल में सेक्स घुला हुआ है. खबरिया चैनलों, अखबारों, पत्रिकाओं, विज्ञापनों, गानों, फिल्मों, सीरियलों चुटकुलों, बातचीत, बाजार हर एक चीज में सेक्स के लिए खुला उकसावा है. इन सब जगहों में सेक्स की असहज उपस्थिति भी अब सहज लगने लगी है. सेक्स करने के लिए उकसाती हर एक चीज हमें उत्तेजित करती है, खुश करती है.

समाज में विवाह से बाहर यौन संबंध हमेशा से रहे हैं, चाहे उन्हें कोई स्वीकार करे या नहीं. यह कैसी बात है कि हम असुरक्षित यौन संबंधों, बलात बनने वाले संबंधों, यहां तक कि यौन हिंसा-यौन शोषण के लिए भी तैयार हैं; लेकिन यौन शिक्षा के नाम पर हमारे दिमाग की नसें तड़कने लगती हैं. यह कितना शर्मनाक है कि हमारे समाज में सेक्स एजुकेशन की शुरुआत नन्हे-नन्हे से बच्चों को यौन हिंसा के कैसे बचा जाए का पाठ पढ़ाने से शुरू हो रही है.

समाज में पुरूष सेक्स का ग्राहक और स्त्री उसकी पूर्तिकर्ता के तौर पर है. समाज अभी भी यौन संबंधों को लेकर इस घटिया और बेहद गलत सोच से निकलना नहीं चाहता. लड़कियों/स्त्रियों ने अपनी शारीरिक, मानसिक ताकत, प्रबंधन क्षमता, हुनर, कौशल, अपने मजबूत इरादों का लोहा तो मनवा लिया है, पर उनकी यौन जरूरतें भी पुरुषों के समान हैं, सहज हैं, यह बात अभी भी किसी के गले नहीं उतर रही. कोई इस पर बात भी नहीं करना चाहता. यौन शिक्षा समाज में प्रचलित भयानक और हिंसक यौन व्यवहार को नियंत्रित करने में, उसे सही दिशा देने में एक महत्वपूण भूमिका निभा सकती है.


कई चीजों के लिए सेक्स एजुकेशन बेहद जरूरी है. जैसे लड़कियों को सुरक्षित-असुरक्षित स्पर्श के बारे में बताने के लिए, लड़कों को यौन अपराध से बचाने के लिए, लड़कियों को अनचाहे गर्भ से बचाने के लिए, किशोरावस्था में लड़कियों के भीतर विपरीत लिंग के प्रति जो प्राकृतिक आकर्षण है, उसे लेकर उन्हें हर तरह का अपराधबोध से बचाने के लिए, लड़के किशोरावस्था के आकर्षण को कैसे संतुलित, सहज और स्वस्थ तरीके से डील करें यह समझाने के लिए, किशारे-किशोरी दोनों ही किशोरावस्था के आकर्षण के कारण किसी मुसीबत में न फसें यह बताने के लिए. आश्चर्य है कि समाज हर तरह की अशलीलता में तो आनंद लेता है, लेकिन स्वस्थ यौन शिक्षा के नाम पर बिदकता है!


अक्सर किशोर अपनी नई-नई यौनेच्छा के कारण घर-परिवार के बच्चों, छोटे लड़के-लड़कियों दोनों को ही सेक्सपूर्ति का जरिया बनाते हैं, जो कि अपने आप में यौन अपराध है. उन्हें यह बताना बेहद जरूरी है कि सेक्स की पहली शर्त ही लड़की-लड़के दोनों की परस्पर सहमति है.

सेक्स को परस्परता और सहमति से ही जोड़कर देखना बच्चों को सेक्स एजुकेशन में बहुत अच्छे से सिखाया जा सकता है. खासतौर से किशोरों/लड़कों को यह सिखाना होगा कि लड़की की सहमति सेक्स की बुनियादी शर्त है. साथ ही सहमति में यौन संबंध सबसे ज्यादा सुखद और आनंदकारी होते हैं. उन्हें ‘सेक्स सिके्रट‘ की तरह बताया जाना चाहिए कि परस्पर सहमति यौन संबंध को सबसे ज्यादा एंजॉय करने का एकमात्र तरीका है. यहीं से लड़कों/पुरुषों का मानस तैयार होगा कि यह लड़कियों पर थोपा जाने वाला व्यवहार नहीं है. बचपन में बार-बार सिखाई गई कई किताबें बातें बच्चे अक्सर लंबे समय तक याद रखते हैं. हो सकता है यौन व्यवहार तक पहुंचने में कुछ अच्छा उनके जेहन में अटका रह जाए.

हाल-फिलहाल की दो फिल्मों के नायकों के संवादों से बहुत आसानी से समझा जा सकता है कि सेक्स के विषय में पुरुषों को लेकर समाज का क्या रवैया है. फिल्म 'बुलेट राजा' और 'राम-लीला' दोनों के नायक कुछ मिलता-जुलता सा डायलॉग देते हैं कि वे अभी तक डेढ़ सौ लड़कियों के साथ संबंध बना चुके हैं. हॉल में इन संवादों का स्वागत जोरदार सीटियों और हंसी से होता है. जाहिर है कि सीटियां बजाने वाले और ठहाका लगाने वाले भी पुरुष ही होंगे!

क्या दर्शक इसके विपरीत सीन की भी उम्मीद कर सकते हैं? क्या नायिका कह सकती है कि वह सौ-डेढ़ सौ पुरुषों के साथ संबंध बना चुकी है? क्या ऐसा कहने वाली नायिका, नायिका बची रह सकती है? न तो कोई नायिका इस बात को कह सकती है और न ही वह सीटियां और हंसी-ठहाके के साथ स्वागत पाएगी. सिर्फ खलनायिका या सेक्सवर्कर से ऐसे संवादों की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन भारतीय पुरुष डेढ़ सौ लड़कियों के साथ यौन संबंध बना के भी नायक ही बना रहेंगे, सेक्सवर्कर नहीं बन जाएंगे!

ऐसे संवाद बोलने वाला नायक सारे पुरुषों को हीरो बन जाता है. नायक का ऐसा यौन व्यवहार पुरुषों का सपना बन जाता है, लेकिन ऐसी किसी लड़की की कल्पना उन्हें गुस्से और घृणा से भर देगी! लड़कियों की यौन इच्छा को नकारना और नकारात्मक तरीके से देखना और पुरुषों की यौन इच्छा को स्वीकार करना और उसका महिमामंडन करना, निश्चित तौर पर यह सोच और व्यवहार भी समाज में बलात्कार और यौन हिंसा को बढ़ावा देता है. स्त्री-पुरूष दोनों की यौन इच्छा को बराबरी के स्तर पर स्वीकार करने और उसका सम्मान किये जाने की सख्त जरूरत है.

नई पीढ़ी की लड़कियों में अपनी यौनेच्छा को लेकर लगभग वैसी ही सजगता है, जैसी पुरुषों-लड़कों में होती है. लेकिन समाज के बड़े हिस्से की लड़कियों/स्त्रियों और लड़कों/पुरुषों की यौनेच्छा में आज भी भयानक फर्क है. लड़कियों की यौनेच्छा को समाज अक्सर खतरनाक चीज की तरह देखता है और उसकी कड़ी पहरेदारी करता है. इस कारण लड़कियां खुद अपनी इस इच्छा को लेकर कुछ अपराधबोध में रहती हैं, उसे दबाती हैं, नकारती हैं या फिर उसे खुलकर अभिव्यक्त भी नहीं करना जानती या चाहती.

दूसरी तरफ लड़कों की यौनेच्छा के प्रति समाज बहुत ज्यादा खुली सोच वाला है और गर्व से भरा रहता है. उसका यौन व्यवहार पूरी तरह नियंत्रण मुक्त है. इस कारण लड़के अपने यौन व्यवहार के प्रति न सिर्फ बेहद सजग, बल्कि आक्रामक भी रहते हैं! लड़के-लड़कियों के यौन व्यवहार को लेकर समाज के इस भयानक फर्क का परिणाम है कि पतियों की यौनेच्छा जबरदस्त सक्रिय रहती है और पत्नियां तुलनात्मक रूप से निष्क्रिय रहती हैं.

इसी कारण यह स्थिति अधिकांशत घरों का सच है कि पत्नियां सेक्स में आनंद के लिए इनवॉल्ब नहीं होती हैं. "पति की इच्छा पूर्ति करना उनका फर्ज है" की सोच के साथ वे सेक्स में इनवॉल्ब होती हैं. साथ ही यह डर भी उन्हें अचनाहे सेक्स में धकेलता है कि पति इस इच्छा के कारण उन्हें छोड़कर कहीं और न जाएं!

सेक्सॉलाजिस्ट प्रकाश कोठारी कहते हैं कि "अधिकांशत भारतीय पति पत्नियों को 'स्लीपिंग पिल' की तरह इस्तेमाल करते हैं." सेक्स एजुकेशन यहां बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है. एक तरफ लड़कियां भी अपनी सेक्स जरूरतों को पहचानें और उसे स्वीकार करें. साथ ही लड़कों/पुरुषों को भी यह बताया-सिखाया जाना चाहिये कि ‘सेक्स की जरूरत सिर्फ पुरुष की होती है और स्त्री उसमें सिर्फ सहयोग करती है’ यह बेहद गलत और विध्वंसकारी धारणा है. इससे पति-पत्नियों के बीच अक्सर एकतरफा बनने वाले यौन संबंधों में कुछ सुधार होगा.


यौनेच्छा पुरुषों की बपौती नहीं है! वह स्त्रियों की भी उतनी ही है जितनी कि पुरुषों की. हां, वर्तमान में तमाम तरह के सामाजिक दबावों, गलत धारणाओं, लड़कियों के लिए यौनशुचिता के एकतरफे दबाव, बच्चे के पालन-पोषण की एकतरफा जिम्मेदारी आदि कारणों से लड़कियों में यौनेच्छा कम होती है, अधिकांशत उन्हें पति की इच्छापूर्ति का साधन भर बनना पड़ता है.


सेक्स एजुकेशन में शुरू से ही लड़कों के दिमाग में यह बात बैठानी चाहिए कि यौनेच्छा लड़का-लड़की दोनों में होती है. खासतौर से लड़कों को बताया जाना चाहिए कि उन्हें स्त्रियों की इच्छा-अनिच्छा का सम्मान करना चाहिए. साथ ही यह भी कि 'लड़की की यौनेच्छा गलत और लड़के की यौनेच्छा सही' भयानक धारणा है. समाज में प्रचलित यौन व्यवहार को देखकर समझा जा सकता है कि यौनेच्छा पुरुष का मालिकाना हक है जिसकी पूर्ति स्त्री की नैतिक-धार्मिक जिम्मेदारी है.

धर्म ग्रंथों में स्त्री की यौनेच्छा को पुरुष के मुकाबले आठ गुना ज्यादा बताया गया है, मगर व्यवहार में उसे स्वीकार ही नहीं किया जाता. सेक्स एजुकेशन में स्त्री की यौनेच्छा के प्रति इन दोनों अतिवादी और गलत सोचों को खत्म किया जा सकता है. समाज में प्रचलित हिंसक यौन व्यवहार को खत्म कर स्वस्थ यौन व्यवहार का प्रचलन बढ़ाने में सेक्स एजुकेशन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. सेक्स एजुकेशन का मुख्य उद्देश्य लड़कियों को यौन शोषण से बचाने की शिक्षा भर देना न होकर समाज में स्वस्थ यौन व्यवहार की स्थापना होना चाहिए.
लेखिका " गायत्री आर्य महिला मसलों की विश्लेषक हैं. स्त्रोत : जनज्वार, WEDNESDAY, 02 APRIL 2014 11:43

No comments:

Post a Comment

s

s
s

d

d
d